Wednesday, January 6, 2010

मकर संक्राति – पतंगो का रंगबिरंगी त्यौहारगुजरात में आंतराष्ट्रीय पतंग महोत्सव की धूम

मकर संक्राति – पतंगो का रंगबिरंगी त्यौहारगुजरात में आंतराष्ट्रीय पतंग महोत्सव की धूम
32 देशो से 87 पतंगबाज इस महोत्सव में भाग लेंगेमहोत्सव के दौरान अहमदाबाद का आसमान रंगीन हो जाता है300 करोड का बिजनस गुजरात को मिलता हैः गुजराती जानते है कि त्यौहारो से भी कैसे मुनाफा कमाया जा सकता है।
- निलेष शुक्ला
विश्वभर में भारत ही एक ऐसा देश है जहां सबसे अधिक त्यौहार मनाये जाते है। भारत वर्ष की परंपरा रही है कि वह त्यौहारों को उत्सव के रुप में मनाकर खुशी हांसिल करता है। इसमें भी गुजराती उत्सव को मनाने में सबसे आगे रहते है और मजे की बात यह है कि वे उत्सव मनाने के साथ-साथ उससे भी अपना मुनाफा कमाना नहीं छोडते। शायद इसीलिए कहा जाता है कि गुजरातीयों की नस-नस में बिजनस बसा हुआ है। मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जबसे गुजरात में उत्सवो को मनाने का सिलसिला शुरु किया है तबसे गुजरात का होटल बिजनस तिगुना बढ गया है। मोदी जी कहते है कि हमने हमारी पहचान केवल 12 रुपये की किंमत से बनाई है फिर वो पतंग हो या डांडिया, जबकि अन्य लोग इसी पहचान के लिए लाखो रुपये खर्च करते है।
गुजरात में वर्ष के अंत में नवरात्रि और कच्छ उत्सव का सफलता पूर्वक आयोजन करने के बाद नववर्ष की शुरुआत अंतराष्ट्रीय पतंग महोत्सव से की जाती है। यह त्यौहार 10 से 14 जनवरी 2010 तक अहमदाबाद में मनाया जायेगा। इस उत्सव में केवल घरेलु पतंगबाज ही नहीं अपितु आंतराष्ट्रीय स्तर के पतंगबाज हिस्सा लेते है। इस वर्ष 32 देशो से 87 पतंगबाज इसमें भाग लेने के लिए आनेवाले है। जिसमें विदेशो से बल्गारीया, फ्रांस, कोलंबिया, मलेशिया, युनाईटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, न्युजिलेन्ड, स्वीट्जरलेन्ड, सिंगापुर, स्वीडन वगेरे देश भाग लेंगे। श्री पी.के गेरा, निवासी आयुक्त, दिल्ली, गुजरात सरकार ने जानकारी दी कि गुजरात सरकार ने इन सभी देशो के एम्बेसेडर व डिप्लोमेट्स को आमंत्रित किया गया है एवं अपने देश में से राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश के पतंगबाज इसमें भाग लेंगे। पतंग महोत्सव को आंतराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाने का श्रेय गुजरात के मुख्यमंत्री को जाता है। इससे गुजरात को 300 करोड रुपयो का व्यापार मिलता है। गुजराती अच्छी तरह से जानते है कि त्यौहारो से भी कैसे मुनाफा कमाया जा सकता है। इससे गृह उद्योग को भी बहुत लाभ होता हैं। घर में ही औरते और बच्चे पतंग बनाने का काम करते हैं कमाई करते हैं। यहां तरह-तरह की पतंगे जैसे गोल, चील, चांदपर, आखियो, पावलो, पोणीया या फिर रोकेट और रात के समय उडाने के लिए लालटेनवाली पतंग खास बिकती है। पूरा आकाश रंग-बिरंगी पतंगो से घिरा रहता हैं।
प्राचीन काल के बहुत से चित्र ऐसे हैं जिसमें भगवान कृष्ण को पतंग उडाते देख सकते हैं। उस समय की पुस्तको में भी पतंग का उल्लेख मिलता है। भारत में मुगल समय में पतंगबाजी का शौक लोकप्रियता के शिखर पर था। अनेक मुगल बेगमो और शहजादो को पतंग उडाने का शौक था। उस समय पतंग का उपयोग प्रेमी को संदेश पहुंचाने के लिए किया जाता था। मध्य काल में संपूर्ण भारत पतंगो से प्रसिद्ध हो गया था। लखनउ व दिल्ली में पतंगो की प्रतियोगिताएं योजी जाती थी। अंतिम बादशाह बहादूरशाह जफर भी पतंग उडाने का शौक रखते थे। उनके समय में यमुना के दोनों किनारो पर पतंग उडाने की प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। दिल्ली व उत्तर भारत के अन्य शहरों में सावन-भादों में पतंग उडाने का रिवाज है। 15 अगस्त के दिन तो आसमान तिरंगी पतंगो से घिर जाता है।
पतंग उडाने का आनंद केवल भारतीय ही लेते हैं ऐसा नहीं हैं। विदेशो में भी पतंग बहुत ही आनंद के साथ उडाई जाती हैं। अमरिका में तो पतंग उडाने के इतिहास को जानने के लिए एक म्युजियम बनाया गया हैं। जिसमें पतंग बनानेवाले कारीगरों के बारे में और जग प्रसिद्ध अलग-अलग तरह की पतंगो के बारे में रोचक जानकारी दी गई हैं। इस म्युजियम का उदघाटन 21 अगस्त 1990 को हुआ था।
थाईलेन्ड में पतंगः यहां 13वीं सदी में पतंग बौद्ध धर्म के लोग भगवान का आशीर्वाद पाने के लिए उडाते थे। और जब वे पतंग उडाते थे तब वे एक अनोखा "हमींग" जैसी आवाज भी करते थे जिससे भगवान तक उनकी आवाज पहुंच सके। आजकल वे वर्षा ऋतु के प्रारंभ में पतंग उडाते हैं जिसमें वे एक बडी सी पतंग जिसे "चुला" कहा जाता है और उसके साथ अन्य छोटी-छोटी पतंगे जिसे "पाकापाओस" कहा जाता हैं उसे उडाते हैं। दो अलग प्रकार की पतंगों को एक-दूसरे को अपनी ओर खिंचने का प्रयास किया जाता है और इस खेल को देखने के लिए मैदान में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे होते हैं।
मलेशिया में पतंगः मलेशिया की पतंगे थाईलेन्ड की पतंगो से जरा अलग होती हैं। यहां पर मोटे तौर पर चकोर पतंग बनाई जाती हैं लेकिन उसकी खासियत यह है कि उसमे कलाकारी की हुई लंबी पूंछ लगाई जाती हैं क्योंकि वहां हवा बहुत तेज चलती हैं। इन्डोनेशिया में पतंगः यहां भी पतंग बहुत समय पहले से ही उपयोग में ली जाती हैं। यहां जो सबसे पहले पतंग बनाई गई थी वह पेड के पत्तो से बनाई गई थी, जिसका उपयोग सागर में दूर मछली पकडने के लिए किया जाता था। इन्डोनेशिया के चारों और आईलेन्ड हैं इसलिए वहां तेज हवाएं चलती हैं इसलिए य़हां पर बडी-बडी पतंगे वनाई जाती हैं जो पक्षी या पशु के आकार की होती हैं। इन पतंगो को बनाने के लिए बांस की लकडी, सूती कपडा या नायलोन का उपयोग किया जाता हैं।
चीन में पतंगः ऐसा कहा जाता है कि चीन में सबसे पहले पतंग का उपयोग दूरी मापने के लिए किया था। वहां भी पतंग उडाने का आनंद एक उत्सव की तरह ही मनाया जाता है। चीन में नौंवे महीने का नवां दिन पतंग उडाने का दिन माना जाता है। कहा जाता है कि 3000 वर्ष पहले चीन के सेनापति ह्युन त्स्यांग ने पतंग को बांस के टुकडे के साथ बांधकर उसे शत्रु के देश में भेजते थे, और जब पतंग में से हवा पास होने से उसमें से सीटी जैसा आवाज निकलता जिसे सुनकर दुश्मन भाग जाते थे। अपने लश्कर के जवानो को संदेश पहुंचाने के लिए भी पतंग का उपयोग किया जाता था। चीन में 300 तरह की अलग-अलग प्रकार की पतंगे बनाई जाती है। चीन की राजधानी बीजिंग में सबसे बडा पतंग का संग्रहालय बनाया गया है।
पतंग का उपयोग लश्कर के अलावा वैज्ञानिक शोध के लिए भी किया जाता था। 1749 में स्कोटलेन्ड के एलेकजेन्डर विल्सन ने पतंग की मदद से विविध उंचाइयों पर उष्णतामान का माप निकाला था। राइट बंधुओने ओस्ट्रिया के लोरेन्स हाग्रेवना 1884 में सिडनी में बक्से के आकार का पतंग बनाकर उसमें वजन डालकर उसे उडाने में सफलता हांसिल की थी।
इस पर्व में जहां लोग पतंग उडाने का आनंद उठाते हैं वहीं मासुम पक्षी भी इसका शिकार हो जाते हैं। क्योंकि अचानक से उनके स्वच्छंद आकाश में पतंग रुपी अनेक डोर की बाधाएं आ जाती हैं जो उन्हें उडने में बाधा डालती हैं और ये निर्दोष या तो घायल होते हैं या मारे जाते हैं। एक अंदाज अनुसार एक ही दिन में करीब 10,000 पक्षी घायल होते हैं या मर जाते हैं। इसलिए पतंग रसिको को चाहिये की वे पतंग उडाते समय इस बात का भी ध्यान रखे की कोई निर्दोष पक्षी घायल न हो।
तो चलिए हम भी पतंग उडाने की तैयारी करते हैं लेकिन जरा संभलकर इससे किसी को कोई नुकसान न हो.... चली रे चली रे पतंग मेरी चली रे..... ये काटा..... वो काटा.....

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